Saturday, April 30, 2016

A poem - Impromptu lines written while coming by bus

चलें किसी ओर तो ऊजाला करें
बहुत अंधेरा है हर तरफ

ऊजाला ना सही बिखेरो लाली
जहां आज हर तरफ है रात काली

कोई उम्मीद की किरन ही दिखा दो
अरसा हुआ पलक झपके, आज सुला दो

ऊगता सुरज ना सही ना सही
कोई डूबता सुर्ख सुरज ही दिखा दो

अपने सपनो की पोटली बाँध
निकला हूँ मैं बचपन से

कोई बूढ़ापे से पहले मेरे
कुछ सपने ही पूरे करा दे

जो ले के आया था सपने मैं आँखे मीचे
कुछ कम करा के ही अपने पास वो खिचे

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